Tuesday, December 18, 2007

उत्तराखण्ड आन्दोलन की कवितायें

उत्तराखण्ड आन्दोलन का गिर्दा द्वारा लिखित कविता ! (बागस्यरौक गीत)
सरजू-गुमती संगम में गंगजली उठूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो '
भुलु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो उतरैणिक कौतीक हिटो वै फैसला करुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूंलो
'बैणी' उत्तराखण्ड ल्हयूंलो
बडी महिमा बास्यरै की के दिनूँ सबूतऐलघातै उतरैणि आब यो अलख जगूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'भुलु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
धन -मयेडी छाति उनरी,धन त्यारा उँ लाल, बलिदानै की जोत जगै ढोलि गै जो उज्याल खटीमा,मंसुरि,मुजफ्फर कैं हम के भुली जुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
'चेली'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो कस हो लो उत्तराखण्ड,कास हमारा नेता, कास ह्वाला पधान गौं का,कसि होली ब्यस्था
जडि़-कंजडि़ उखेलि भली कैं , पुरि बहस करुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो वि कैं मनकसो बैंणूलोबैंणी फाँसी उमर नि माजैलि दिलिपना कढ़ाई
रम,रैफल, ल्येफ्ट-रैट कसि हुँछौ बतूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'ज्वानो' उत्तराखण्ड ल्हयूँलो मैंसन हूँ घर-कुडि़ हौ,भैंसल हूँ खाल, गोरु-बाछन हूँ गोचर ही,चाड़-प्वाथन हूँ डाल
धूर-जगल फूल फलो यस मुलुक बैंणूलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'परु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
पांणिक जागि पांणि एजौ,बल्फ मे उज्याल, दुख बिमारी में मिली जो दवाई-अस्पताल सबनै हूँ बराबरी हौ उसनै है बतूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
सांच न मराल् झुरी-झुरी जाँ झुट नि डौंरी पाला, सि, लाकश़ बजरी चोर जौं नि फाँरी पाला
जैदिन जौल यस नी है जो हम लडते रुंलो उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
लुछालुछ कछेरि मे नि हौ, ब्लौकन में लूट, मरी भैंसा का कान काटि खाँणकि न हौ छूट
कुकरी-गासैकि नियम नि हौ यस पनत कँरुलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
जात-पात नान्-ठुल को नी होलो सवाल, सबै उत्तराखण्डी भया हिमाला का लाल
ये धरती सबै की छू सबै यती रुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
यस मुलूक वणै आपुँणो उनन कैं देखुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो

उठा गढ़वालियो ! (सत्य नारायण रतूणी)

अब त समय यो सेण को नी छ.तजा यो मोह निद्रा कू. अजौ तैं जो पडी़ ही छ
अलो! आपण मुलूक की यों छुटावा दीर्घ निद्रा कूँ,सिरा का तुम इनी गहैरी खडा़ माँ जीन गिरा यालै
आहे! तुम भैर त देखा, कभी से लोक जाग्याँ छन,जरा सी आँख त खोला,कनो अब घाम चमक्यूँ छपुराणा वीर व ऋषियों का भला वतान्त कू देखा,छयाई उँ बडौ की ही सभी सन्तान तुम भी त
स्वदेशी गीत कू एक दम गुँजावा स्वर्ग तैं भायों,भला छौंरु कसालू की कभी तुम कू कमी नी छ
बजावा ढोल रणसिंघा,सजावा थौल कू सारा,दिखावा देश वीरत्व भरी पूरी सभा बीच
उठाला देश का देवतौं साणी,बांका भड़ कू भी,पुकारा जोर से भ्यौ घणा मंडाण का बीचकरा प्यारो !
करा तुम त लगा उदोग माँ भायों,किलै तुम सुस्त सा बैठयों छयाई औरक्या नी छ
करा संकल्प कू सच्चा, भरा अब जोश दिल माँ तुम,अखाडा़ माँ बणा तुम सिंह,गर्जा देश का बीच
बजावा सत्य को डंका सबू का द्धार पर जैकभगवा दुःख दारिद्रय करा शिक्षा भली जो छ
अगर चाहयैंत हवै सकदैं धनी विद्धान बलधारी,भली सरकार की छाया मिंजे तुम कू कमी क्या छ
जागो मेरा लाल

उत्तराखण्ड..........लडाई (लोकेश नवानी)

जो लोग उस ओर अपनी बंदूकें पोछ रहे है,
बूट उतारकर धूप सैकनें में मस्त,
शान्ति का लिवास पहने ठिठोली करते हुए
तुम्हारे जेहन का डर दूर कर रहे हैं
ताकि तुम सोये रहो, बजाते रहो चैन की बंसी,
असल में तुम्हारे दिमाग निहत्थे किये जा रहे है-लगातार...
इसलिए मत सोने दो दिमाग को,डटे रहो मोर्चे पर,
होने वाले हर हमले के खिलाफ, वजूद के नस्तानाबूत हो जाने के बजाय,
चुनौती दो, उसकी अस्मिता को भी, लडा़ई को चुपचाप उनके हाथो में सौंप देने से
पहले खबरदार रहो निर्णायक लडाई लडने के लिए, लड़ाई होकर रहेगी

चलना भी आता है पहाडो़ को

पहाड़ केवल , धूप के दरिया नही है
न होते है केवल, बुरांस के फूल
और शाल वक्षों का देश
बेकल आनन्द से भर देने वाले केवल दश्य ही न हीं है पहाड़
न हैं पहाड़ सिर्फ नदियों के आदि स्त्रोत पहाडो़ में बसते है लोग नितान्त एकान्त में
जंगल के नितम्ब से मिकलने वाली तंग तलहटियों के मध्य,
था उत्तेग शिखरो की काली चट्टानो के आसपास,
हाथो में चुनी झोपडियों में पहाडो़ को इतना ठंडा मत समझो
सुलगते हैं भीतर ही भीतर, ज्वालामुखी की तरह, वेशक
मौसम बनाते है इन्हे, सहनशील और धैर्यवान
मत समझो पहाडो़ को बोलना नही आता पहचाने जाते है
पहाड़ यहां बसने वाले लोगो से इसलिए
अब पहाड़ अपने लोगों की मुकम्मल पहचान के लिए लुढ़कना चाहते है,
मैदान की ओर
मत समझोमत समझो पहाडों को उठकर चलना नही आता, चलना भी आता है पहाडों को

1 comment:

Unknown said...

PAHAR KA VIKAS TUB TAK SAMBHAV NAHI HEY JAB TAK KI ISKI RAJDHANI PAHAR KAY KISI SEHAR MAY NA HO.