Saturday, August 8, 2009

जय गोलू, जय बद्री-केदार, गैरसैंण में बैठेगी उत्तराखण्ड सरकार

कई साल पहले की बात है 2 भाई थे, इतिहास में Write Brothers के नाम से प्रसिद्ध हैं. उन्होंने एक सपना देखा, सपना था आदमी को हवा में उड़ाने की तकनीक विकसित करने का. लोगों ने उनकी खिल्ली उड़ाई, कुछ लोगों ने उन्हें ’सिरफिरा’ कहा.

आज हवाई जहाज में उड़ते हुए हम एयर होस्टेस की खूबसूरती निहारते हुए और पत्रिकाएं उपन्यास पड़ते हुए सफर खतम कर देते हैं पर शायद ही कोई Write Brothers को याद करता होगा.
ऐसे ही सिरफिरों ने फिर एक सपना देखा. 1857 में कुछ सिरफिरों ने सोचा क्यूं ना भारत से अंग्रेजों को खदेड़ दिया जाये. कोशिश की, पूरी सफलता तो नही मिली, लेकिन और लोगों के दिमाग में सपना जगा गये. आखिर 90 साल बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ. अब साल में एक-दो बार उन ’सिरफिरों’ को याद कर लो तो बहुत है. क्यूंकि भाई अब तो आजादी शब्द समलैंगिकता और ना जाने किन-किन बेहूदा मसलों के लिये प्रयोग किया जाने लगा है.

अपने पहाड़ी लोग भी कम ’सिरफिरे’ जो क्या ठैरे? भारत को आजादी मिलने के समय से ही कहने लगे कि हमें अलग राज्य चाहिये. 1994 में तो हद ही कर दी, कहने लगे- आज दो अभी दो, उत्तराखण्ड राज्य दो. उस टाइम भी कुछ विद्वान लोग अवतरित हुए. एक ’विद्वान’ तब कहते थे- "उत्तराखण्ड राज्य मेरी लाश पर बनेगा". उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला तोइ चूके नहीं. एक और भाई सैब थे, ये बोलते थे- "राज्य तो शायद नही बन पायेगा, अगर केन्द्र शासित प्रदेश (Union Territory) हो जाये तो हमें मन्जूर है. (नाम नही बोलुंगा- दोनों लोग उच्च पद पर आसीन है, नाम लेने से पद की गरिमा को ठेस पहुंच सकती है.)

जो भी हुआ फिर, नवम्बर 2000 में उत्तराखण्ड राज्य बन ही गया. इन ’सिरफिरों’ का सपना भी सच हो गया? ’विद्वान’ लोग बोले राजधानी Temporary रखते हैं अभी. समिति बनाओ वो ही बतायेगी असली वाली राजधानी कहां होगी? समिति ने 9 साल लगा दिये यह बताने में कि Temporary वाली राजधानी ही Permanent के लायक है. और यह भी बोला कि पहाड़ की तरफ़ तो देखना भी मत, स्थाई राजधानी के लिये, वहां तो समस्याएं ही समस्याएं हैं. (उन्होंने बताया तो हमें भी यह पता लगा). समिति ने कहा है कि नया शहर बसाने में तो खर्चा भी बहुत होगा.

लेकिन फिर कुछ नये टाइप के ’सिरफिरे’ पैदा हो रहे हैं. उनका कहना है कि समस्याओं से भाग क्यों रहे हो? उन्हें हल करो. राजधानी बनानी है प्रदेश की जनता की सुविधा के लिये, नेताओं और नौकरशाहों की सुविधा के लिये नहीं. बांध बनाने के लिये तो पुराने शहरों, दर्जनों गांवों को उजाड़ कर नया शहर बना रहे हो, राजधानी के लिये भी बनाओ एक नया शहर!!!! ’सिरफिरे’ कह रहे हैं - ना भावर ना सैंण, उत्तराखण्ड की राजधानी होगी गैरसैंण. अब देखते हैं फिर क्या करते हैं ये ’सिरफिरे’? कुछ विद्वान ऐसा भी कह गये हैं - "No Gain Without Pain", विद्वानों ने कहा है तो भई ठीक ही कहा होगा. तो करो संघर्ष, अब उत्तराखण्ड की राजधानी को गैरसैंण पहुंचा कर ही दम लेना है हां!!!

2 comments:

Anonymous said...

[color=blue]I suppose there really isn't too much to really tell bout lil ol me.
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कविता रावत said...

Accha lekh...
Likhte rahiye...
Haardik shubhkamnayne