Tuesday, December 18, 2007

वन्दन मातृभूमि उत्तराखण्ड का


















जमीं है मां मेरी बस यही है कहना
उसके लिए जीना, उसी के लिए है मरना।
चोट पे जहां धूल भी मरहम बन जाती
प्यासी नदीयां भी जहां प्यास बुझाती।
राहें भी हैं मदमस्त सर्प सी बलखाती
हवाएं भी ममतामयी लोरी गाकर सुनाती।
ना मिलेगा उस सा प्यार बस यही है कहना।
उसके लिए जीना, उसी के लिए है मरना।
कहां मिलेगा वैसा हरियाली का आंचल
कहां मिलेगा वैसा वो संतरंगी बादल।
हर कदम पर जहां है पर्वतों की माला
देवभूमि, उतराखंड जो है कहलाता।
जिए भी तो कैसे उस पहचान के बिना
उसके लिए जीना, उसी के लिए है मरना।
ख्वाबों की तलाश में कितनी दूर आ गए
अपनी जमीं को ही रोती छोड़ आ गए।
उसके कर्ज़ को कहीं हम भूल ना जाएं
चलो उस मां का थोड़ा सा ऋण चुकाएं
खुशहाली के रंग में उसे फिर है आज रंगना
उसके लिए जीना, उसी के लिए है मरना।

जय उत्तराखण्ड!

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