हालाते सरकार ऎसी हो पड़ी तो क्या करें?
हो गई लाजिम जलानी झोपड़ी तो क्या करें?
हादसा बस यों कि बच्चों में उछाली कंकरी,
वो पलट के गोलाबारी हो गई तो क्या करें?
गोलियां कोई निशाना बांध कर दागी थी क्या?
खुद निशाने पै पड़ी आ खोपड़ी तो क्या करें?
खाम-खां ही ताड़ तिल का कर दिया करते हैं लोग,
वो पुलिस है, उससे हत्या हो पड़ी तो क्या करें?
कांड पर संसद तलक ने शोक प्रकट कर दिया,
जनता अपनी लाश बाबत रो पड़ी तो क्या करें?
आप इतनी बात लेकर बेवजह नाशाद हैं,
रेजगारी जेब की थी, खो पड़ी तो क्या करें?
आप जैसी दूरदृष्टि, आप जैसे हौंसले,
देश की आत्मा गर सो पड़ी तो क्या करें?
यह कविता उत्तराखण्ड के जनकवि श्री गिरीश चन्द्र तिवारी "गिर्दा" ने दिनांक आठ अक्टूबर, १९८३ को नैनीताल में हुई पुलिस फायरिंग के बाद लिखी थी।
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