Wednesday, November 12, 2008

तुम पूछ रहे हो आठ साल, उत्तराखण्ड के हाल-चाल?

राज्य बनने की आठवीं वर्षगांठ पर जनकवि गिरीश तिवारी "गिर्दा" की एक कविता

तुम पूछ रहे हो आठ साल, उत्तराखण्ड के हाल-चाल?

कैसे कह दूं, इन सालों में,
कुछ भी नहीं घटा कुछ नहीं हुआ,
दो बार नाम बदला-अदला,
दो-दो सरकारें बदल गई
और चार मुख्यमंत्री झेले।
"राजधानी" अब तक लटकी है,
कुछ पता नहीं "दीक्षित" का पर,
मानसिक सुई थी जहां रुकी,
गढ़-कुमूं-पहाड़ी-मैदानी, इत्यादि-आदि,
वो सुई वहीं पर अटकी है।
वो बाहर से जो हैं सो पर,
भीतरी घाव गहराते हैं,
आंखों से लहू रुलाते हैं।
वह गन्ने के खेतों वाली,
आंखें जब उठाती हैं,
भीतर तक दहला जातीं हैं।
सच पूछो- उन भोली-भाली,
आंखों का सपना बिखर गया।
यह राज्य बेचारा "दिल्ली-देहरा एक्सप्रेस"
बनकर ठहर गया है।
जिसमें बैठे अधिकांश माफिया,
हैं या उनके प्यादे हैं,
बाहर से सब चिकने-चुपड़े,
भीतर नापाक इरादे हैं,
जो कल तक आंखें चुराते थे,
वो बने फिरे शहजादे हैं।
थोड़ी भी गैरत होती तो,
शर्म से उनको गढ़ जाना था,
बेशर्म वही इतराते हैं।
सच पूछो तो उत्तराखण्ड का,
सपना चकनाचूर हुआ,
यह लेन-देन, बिक्री-खरीद का,
गहराता नासूर हुआ।
दिल-धमनी, मन-मस्तिष्क बिके,
जंगल-जल कत्लेआम हुआ,
जो पहले छिट-पुट होता था,
वो सब अब खुलेआम हुआ।

पर बेशर्मों से कहना क्या?
लेकिन "चुप्पी" भी ठी नहीं,
कोई तो तोड़ेगा यह ’चुप्पी’
इसलिये तुम्हारे माध्यम से,
धर दिये सामने सही हाल,
उत्तराखण्ड के आठ साल.....!

2 comments:

Anonymous said...

धन्यवाद धोंसियाजी उत्तराखंड की वर्तमान दशा का सटीक वर्णन कराने वाली कविता पढ़वाने के लिए |

Anil said...

Ek sangharsh, jo maine mere bachpan me dekha tha,o utsah logon ka, o julm jo unhone sahe. wah poori kahani lagne wali baten anayas hi ankhon me aa gayi...
Dhanyawad pankaj ji..

mene yahan par bhi thodi si koshish ki hai:-
www.uttrakhandyatra.blogspot.com