Wednesday, September 10, 2008

गिरीश तिवारी "गिर्दा" की एक कविता

"उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन" के दौरान सरकारी उत्पीडन व दमन का परिहास करती गिरीश तिवारी "गिर्दा" की यह पंक्तियां आम लोगों के मन पर अंकित हो गयीं.

गोलियां कोई निशाना बांधकर दागी थी क्या?
खुद निशाने पर आ पङी खोपङी तो क्या करें?
खामख्वां ही तिल का ताङ बना देते हैं लोग,
वो पुलिस है, उससे हत्या हो पङी तो क्या करें?
काण्ड पर संसद तलक ने शोक प्रकट कर दिया,
जनता अपनी लाश बाबत, रो पङे तो क्या करें?
आप जैसी दूरद्रष्टि, आप जैसे हौंसले,
देश की ही आत्मा गर सो गयी तो क्या करें?

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