Wednesday, April 9, 2008

उत्तराखण्ड आन्दोलन का गिर्दा द्वारा लिखित कविता ! (बागस्यरौक गीत)

सरजू-गुमती संगम में गंगजली उठूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'भुलु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
उतरैणिक कौतीक हिटो वै फैसला करुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूंलो 'बैणी' उत्तराखण्ड ल्हयूंलो
बडी महिमा बास्यरै की के दिनूँ सबूतऐलघातै उतरैणि आब यो अलख जगूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'भुलु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो धन -मयेडी छाति उनरी,धन त्यारा उँ लाल, बलिदानै की जोत जगै ढोलि गै जो उज्याल खटीमा,मंसुरि,मुजफ्फर कैं हम के भुली जुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'चेली'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
कस हो लो उत्तराखण्ड,कास हमारा नेता, कास ह्वाला पधान गौं का,कसि होली ब्यस्था
जडि़-कंजडि़ उखेलि भली कैं , पुरि बहस करुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो वि कैं मनकसो बैंणूलोबैंणी फाँसी उमर नि माजैलि दिलिपना कढ़ाई
रम,रैफल, ल्येफ्ट-रैट कसि हुँछौ बतूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'ज्वानो' उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
मैंसन हूँ घर-कुडि़ हौ,भैंसल हूँ खाल, गोरु-बाछन हूँ गोचर ही,चाड़-प्वाथन हूँ डाल
धूर-जगल फूल फलो यस मुलुक बैंणूलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'परु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
पांणिक जागि पांणि एजौ,बल्फ मे उज्याल, दुख बिमारी में मिली जो दवाई-अस्पताल सबनै हूँ बराबरी हौ उसनै है बतूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
सांच न मराल् झुरी-झुरी जाँ झुट नि डौंरी पाला, सि, लाकश़ बजरी चोर जौं नि फाँरी पाला
जैदिन जौल यस नी है जो हम लडते रुंलो उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
लुछालुछ कछेरि मे नि हौ, ब्लौकन में लूट, मरी भैंसा का कान काटि खाँणकि न हौ छूट
कुकरी-गासैकि नियम नि हौ यस पनत कँरुलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
जात-पात नान्-ठुल को नी होलो सवाल, सबै उत्तराखण्डी भया हिमाला का लाल
ये धरती सबै की छू सबै यती रुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
यस मुलूक वणै आपुँणो उनन कैं देखुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो

1 comment:

Unknown said...

अति सुन्दर रचना है, नेट पर गिर्दा को उपलब्ध कराने के लिये आपका धन्यवाद